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आ यस्त॒तन्थ॒ रोद॑सी॒ वि भा॒सा श्रवो॑भिश्च श्रव॒स्य१॒॑स्तरु॑त्रः। बृ॒हद्भि॒र्वाजैः॒ स्थवि॑रेभिर॒स्मे रे॒वद्भि॑रग्ने वित॒रं वि भा॑हि ॥११॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā yas tatantha rodasī vi bhāsā śravobhiś ca śravasyas tarutraḥ | bṛhadbhir vājaiḥ sthavirebhir asme revadbhir agne vitaraṁ vi bhāhi ||

पद पाठ

आ। यः। त॒तन्थ॑। रोद॑सी॒ इति॑। वि। भा॒सा। श्रवः॑ऽभिः। च॒। श्र॒व॒स्यः॑। तरु॑त्रः। बृ॒हत्ऽभिः॑। वाजैः॑। स्थवि॑रेभिः। अ॒स्मे इति॑। रे॒वत्ऽभिः॑। अ॒ग्ने॒। वि॒ऽत॒रम्। वि। भा॒हि॒ ॥११॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:1» मन्त्र:11 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:36» मन्त्र:6 | मण्डल:6» अनुवाक:1» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य किस को प्राप्त होवें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वन् ! (यः) जो अग्नि (भासा) प्रकाश से और (श्रवोभिः) श्रवण आदि वा अन्न आदि से (च) भी (श्रवस्यः) सुनने के योग्य और (तरुत्रः) दुःख से पार करनेवाला (बृहद्भिः) बड़े और (स्थविरेभिः) स्थूल अर्थात् भारी (वाजैः) संग्रामों के सहित वर्त्तमान (रेवद्भिः) बहुत धनों से युक्त जनों के साथ (रोदसी) द्यावापृथिवी को (वि, आ, ततन्थ) विशेष कर सब प्रकार विस्तार करता है तथा (अस्मे) हम लोगों के लिये उस (वितरम्) वितर अर्थात् विविध प्रकार से तरते हैं जिससे उसको (वि, भाहि) उत्तम प्रकार प्रकाशित कीजिये ॥११॥
भावार्थभाषाः - जो विद्वान् जन उत्तम विद्या से अग्नि के प्रभाव को जानें तो विस्मय को प्राप्त होकर चकित होवें ॥११॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः किं प्राप्नुयुरित्याह ॥

अन्वय:

हे अग्ने विद्वन् ! योऽग्निर्भासा श्रवोभिश्च श्रवस्यस्तरुत्रो बृहद्भिः स्थविरेभिर्वाजै रेवद्भिः सह रोदसी व्या ततन्थाऽस्मे तं वितरं वि भाहि ॥११॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) (यः) (ततन्थ) विस्तृणोति (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (वि) (भासा) दीप्त्या (श्रवोभिः) श्रवणाद्यैरन्नादिभिर्वा (च) (श्रवस्यः) श्रोतुमर्हः (तरुत्रः) दुःखात्तारकः (बृहद्भिः) महद्भिः (वाजैः) सङ्ग्रामैः सह वर्त्तमानैः (स्थविरेभिः) स्थूलैः (अस्मै) (रेवद्भिः) बहुधनयुक्तैः (अग्ने) विद्वन् (वितरम्) विविधतया तरन्ति येन तम् (वि) (भाहि) ॥११॥
भावार्थभाषाः - यदि विद्वांसः सुविद्ययाऽग्नेः प्रभावं विजानीयुस्तर्हि विस्मयं प्राप्य चकिता जायेरन् ॥११॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे विद्वान लोक उत्तम विद्येद्वारे अग्नीचा प्रभाव जाणतात ते विस्मयचकित होतात. ॥ ११ ॥